पहली बात तो ये कि जो लोग आजकल शंबूक बध को लेकर विलाप कर रहे हैं, वे लोग कभी भी रामायण और श्री राम को वास्तविक नहीं मानते हैं. उनकी नजर में रामायण एक काल्पनिक कहानी है और श्रीराम उस कहानी के काल्पनिक पात्र हैं. मेरा उनसे कहना है कि - जब आपकी नजर में श्रीराम और रामायण ही काल्पनिक है तो फिर शम्बूक ही वास्तविक कैसे हो सकता है.
अब हम शम्बूक को भी वास्तविक मानकर ही चर्चा कर लेते हैं. किसी आनंद रामायण के हवाले से बताया जाता है कि- शम्बूक नाम का शूद्र तपस्या कर रहा था जिसकी बजह से बच्चों की मृत्यु होने लगी, तब श्रीराम ने शम्बूक का बध कर दिया. इसको लेकर शम्बूक प्रेमियों का कहना है कि पुराने समय में शूद्र को तपस्या करने पर मार डाला जाता था.
अगर प्राचीन ग्रंथों को पढ़ें तो पता चलेगा मनुष्य / राक्षस सभी तपस्या करते थे और भगवान् से वरदान प्राप्त करते थे. शम्बूक की कहानी से यह पता चलता है कि वह पेड़ से उल्टा लटक कर कोई तपस्या नहीं बल्कि कोई तांत्रिक सिद्धि कर रहा था जिसके कारण कुछ बच्चों की मृत्यु हो गई थी. इन बच्चों में केवल एक बच्चा ब्राह्मण का था, बाकी अन्य जाती के थे.
एक क्षत्रीय का बच्चा था, एक वैश्य का बच्चा था, एक तेली का बच्चा था, एक लोहार का बच्चा था और एक चमार का बच्चा था. जब श्रीराम के पास यह खबर जाती है कि शम्बूक की तांत्रिक सिद्धियों के कारण कुछ बच्चों की मृत्यु हुई है अथवा वे कोमा में चले तो गए हैं तो श्रीराम उस तांत्रिक शम्बूक का बध कर देते हैं और शम्बूक के मरते ही बच्चे पुनर्जीवित हो जाते है.
अगर आप शम्बूक के बध की बात को सच मानते हैं तो आपको शम्बूक के मरने के बाद बच्चों के पुनर्जीवित होने की बात को भी सच मानना पड़ेगा. अगर आप बच्चों के पुनर्जीवित होने की बात को सच मानते हैं तो आपको यह भी मानना ही पड़ेगा कि उन बच्चों की मृत्यु अथवा कोमा में चले जाने की बजह शम्बूक ही था वर्ना उसके मरते ही बच्चे पुनर्जीवित नहीं हो जाते.
तांत्रिकों के किस्से तो आप आजकल भी पढ़ते ही रहते हैं. तांत्रिको के चक्कर में पढ़कर जान जाने की वारदात भी सुनने को मिलती रहती है. आज भी तांत्रिक क्रियाओं को गैर क़ानूनी माना जाता है. आज भी कहीं पता चले कि किसी तांत्रिक के चक्कर में पड़ने से किसी की जान गई है तो आज के कानून के अनुसार भी उसे हत्या का दोषी मानकर सजा दी जाती है.
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