राजा नरपति सिंह रैकवार माधोगंज रुइयाँ के राजा थे. 1867 में अनेकों देशी रियासतों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के सुर उठने लगे थे. ऐसे में एक दिन नाना साहब पेशवा का एक दूत रोटी का टुकड़ा और कमल का फूल लेकर रुइया गढ़ी स्थित नरपति सिंह के दरबार में पहुंचा.
कमल क्रांति का चिन्ह व रोटी का टुकडा सभी जाति -वर्ग में भाईचारे व संगठन का प्रतीक था । रुइया नरेश ने इसे स्वीकार करते हुए नाना साहब को पैगाम भेजा और संकल्प लिया की जब तक जिन्दा रहूँगा तब तक देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करता रहूँगा.
नरपति सिंह रैकवार जी ने नाना साहब को यह भी सन्देश दिया कि सारी देशी रियासतें मई माह में एक साथ अंग्रेजों पर हमला करना चाहिए. नरपति सिंह ने सगे भाई बेनी सिंह को मुख्य सेनापति बनाकर तीन कमान बनाई , जिसका नेतृत्व बस्ती सिंह, लखन सिंह व बद्री ठाकुर कर रहे थे.
लेकिन इसी बीच 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी में सैनिक मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया. इसके कुछ दिन बाद लखनऊ में भी विद्रोह हो गया. उस समय अंग्रेजी फौज ने मल्लावां को हेड क्वाटर बना रखा था. अंग्रेजों ने लखनऊ को घेरने के लिए सेना भेजने का आदेश दे दिया,
मल्लावां के डिप्टी कमिशनर डब्लू. सी. चैपर को जब विद्रोह का समाचार मिला तो उन्होंने अंग्रेजी सेना के सचिव कैप्टन हैचिनशन को माधौगंज की ओर न जाने की सलाह दी, लेकिन हैचिनशन अपनी जिद पर अड़ा रहा और अपनी सेना को माधोगंज की तरफ भेज दिया.
लेकिन नरपति सिंह और बरुआ के गुलाब सिंह ने अपनी सेना के साथ अंग्रेजी सेना का रास्ता रोक लिया. 15 मई 1857 को संडीला में भीषण युद्ध हुआ और उन्होंने अंग्रेज सेना का वो हाल किया कि लगभग डेढ़ साल तक अंग्रेज हरदोई जिले में पैर नहीं जम सके.
संडीला की लड़ाई में जीत के बाद रुइयाँ अंग्रेजों के दुश्मनो का केंद्र बन गया. देशी रियासतों के राजा और सैनिको के साथ साथ स्वतंत्र रूप से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे स्वाधीनता सेनानी भी रुइयाँ पहुँचने लगे. यह देखकर हैचिनशन वहां से भाग गया.
पास की एक छोटी रियासत "गंजमुरादाबाद" का नवाब अंग्रेजों का पिट्ठू था. 3 जून 1857 रुइया नरेश ने गंजमुरादाबाद पर आक्रमण कर नवाब को पकड़ लिया तथा उसके भतीजे को नवाब बना दिया. इससे डिप्टी कमिशनर चैपर भी बौखला गया और अक्रामक हो उठा.
8 जून 1857 को नरपति सिंह कुछ क्रांतिकारियों को लेकर मल्लावां पर चढ़ाई कर दी. तब चैपर भागकर संडीला चला गया. क्रांतकारियों ने बड़ी संख्या में अंग्रेजों का कत्लेआम किया और देशी मूल के अंग्रेजी सैनिकों को कैद कर लिया तथा तहसील, अदालत व थाना फूंक दिया.
इसके अलावा उन्होंने बरबस के सोमवंशी मुआफ़िदारो के मुखिया माधोसिंह (जिसे अवध को शासन में मिलाने के बाद अंग्रेजों ने थानेदार नियुक्त किया था) पर आक्रमण कर उसकी बस्ती को जला दिया और अंग्रेजों के पिट्ठू माधोसिंह को भी कैद कर लिया.
राजा नरपति सिंह का रौद्र रूप देखकर अंग्रेज और अंग्रेजों के भारतीय चमचे दहल गए. नाना साहब पेशवा के कहने पर के बिठूर से तात्या टोपे और फैजाबाद से मौलवी लियाकत अली भी उनसे मिलने आये और साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ने पर सहमति बनाई.
उधर दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफ़र को अंग्रेजों ने कैद कर लिया और अंग्रेज अफसर हडसन ने बादशाह के सामने ही उनके दो बेटों को मौत के घाट उतार दिया. बादशाह का बड़ा शहजादा फिरोजशाह किसी तरह से भागकर संडीला पहुंचा और राजा नरपति सिंह से मुलाक़ात की.
राजा के इशारे पर फिरोजशाह के वीर साथी लक्कड़ शाह ने संडीला के आस-पास का क्षेत्र स्वंतत्र कर लिया तथा मौलवी लियाकत अली ने बिलग्राम, सांडी, पाली और शाहाबाद तक अंग्रेज परस्तों को मार गिराया. इस लड़ाई के मुख्य रणनीतिकार नरपति सिंह रैकवार ही थे,
उनकी विजय को देखकर शिवराजपुर के राजा सती प्रसाद सिंह तथा बांगरमोऊ के ज़मीदार जसा सिंह भी वहां आकर राजा के सहयोगी बन गए. बेरुआ स्टेट के सरबराकार गुलाब सिंह लखनऊ, रहीमाबाद व संडीला की लड़ाई लड़ते हुए नरपति सिंह के सहयोग में आ मिले.
अब तक अंग्रेजों से लड़ाई देश के काफी बड़े हिस्से में फ़ैल चुकी थी. कई जगह अंग्रेज जीत रहे थे और कई जगहों पर भारत के स्वाधीनता सेनानी. लेकिन कोई भी अंग्रेज अधिकारी नरपति सिंह रैकवार का सामना करने जाने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहा था.
अंततः अंग्रेजों ने अपने बहुत बड़े अधिकारी ब्रिगेडियर होप के साथ 10 लेफ्टिनेंट वाली एक बड़ी फ़ौज भेजी. 15 अप्रैल 1818 को राजा नरपत सिंह एवं अंग्रेजी सेना के बीच युद्ध हुआ जिसमें राजा नरपति सिंह जी की सेना ने ब्रिगेडियर होप एवं पांच लेफ्टिनेंट कर्नल सहित 58 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया
उन्होंने अंग्रेजी सेना को सवाजपुर तक खदेड़ दिया. ब्रिगेडियर होप अंग्रेजों की रानी विक्टोरिया का सगा ममेरा भाई था. जब लन्दन में ब्रिगेडियर होप की मौत की खबर पहुंची तो इनलैंड का झंडा झुका दिया गया और सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया
इस विजय के उपलक्ष में राजा नरपत सिंह स्मारक संस्थान हर साल 15 अप्रैल को बड़ी धूमधाम से विजय दिवस समारोह मनाती है. इस बर्ष कोरोना महामारी के कारण यह समारोह स्थगित किया गया है. लेकिन हम अपने घर पर तो उन्हें याद कर ही सकते हैं
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