Monday, 22 July 2019

जनरल शाहनवाज खान

जनरल शाहनवाज खान का जन्म वर्तमान पापिस्तान में माटोर गाँव में 24 जनवरी 1914 को हुआ था. उनके पिता का नाम सरदार टिक्का खान था. रावलपिंडी में पढ़ाई करने के बाद वे ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गए और ब्रिटिश सेना में कैप्टेन के पद पर पहुंचे.
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नेताजी सुभाष चन्द्र बोष ने हिटलर के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. उन्होंने देशवाशियों (विशेषकर भारतीय मूल के ब्रिटिश सैनिको) से आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल होने का आव्हान किया.
तब कैप्टन शाहनवाज खान भी आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल हो गए. सुभाष चन्द बोष उनको आजाद हिन्द फ़ौज का एक जनरल घोषित कर दिया. आजाद हिन्द फ़ौज ने मियान्मार, पूर्वोत्तर भारत और एंड अंडमान में अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी.
लेकिन हमें यह नहीं पता है कि - जनरल शाहनवाज ने किस मोर्चे पर का लड़ाई का नेतृत्व किया था. विश्वयुद्ध में हिटलर की हार और सुभाष चन्द्र बोष के गायब हो जाने के बाद, जनरल शाहनवाज के नेत्रत्व में आजाद हिन्द फ़ौज ने भी सरेंडर कर दिया था.
कहा जाता है कि - ले. कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन और आजाद हिन्द फ़ौज के ज्यादातर सैनिक सरेंडर करने के खिलाफ थे और अंतिम सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रखना चाहते थे लेकिन कर्नल प्रेम सहगल और जनरल शाहनवाज सरेंडर के पक्ष में थे.
15 नवम्बर 1945 से लेकर 31 दिसम्बर 1945 तक उनपर लालकिले में बनी अस्थाई अदालत में मुकदमा चलाया गया. जहां सुभाष चन्द्र बोष को तो विश्युद्ध का अपराधी घोषित किया, परन्तु कमाण्डर-इन-चीफ सर क्लॉड अक्लनिक द्वार इनको माफी दे दी गई.
बंटबारे के बाद शाहनवाज और उनका परिवार पापिस्तान जाना चाहता था लेकिन नेहरु द्वारा समझाने पर वे भारत में ही रुक गए जबकि उनका लगभग पूरा खानदान पापिस्तान चला गया. शाहनवाज भी आजाद हिन्द फ़ौज से नाता तोड़कर कांग्रेसी बन गए.
आजादी के समय सारा देश सुभाष चन्द्र बोश की जय जयकार कर रहा था. नेहरु के मन में जो बोष के प्रति जो दुर्भावना थी उसे भी लोग जानते ही थे. ऐसे में अपनी छवि को सुधारने की खातिर बोस के पुराने साथी शाहनवाज खान को अपने साथ मिला लिया.
लालकिले पर तिरंगा फहराने का मौका देकर, नेहरु ने सुभाष चन्द्र बोस के समर्थकों को खामोश कर दिया. आजादी के बाद जनरल शाहनवाज खान कांग्रेस में शामिल हो गए और अपने साथियों को भूल गए. वे कांग्रेस के टिकट पर मेरठ से चार बार सांसद रहे.
देश की जनता द्वारा सुभाष चन्द्र बोस का पता लगाने की जोरदार मांग के कारण नेहरु 1956 में एक समिति बनाने पर मजबूर हो गए, जिसका काम था "बोष" के लापता होने के रहस्य का पता लगाना था. शाहनवाज खान को उस समिति का अध्यक्ष बनाया.
लेकिन कभी सुभाष चन्द्र बोस के साथी रहे शाहनवाज खान ने इसके लिए कुछ भी ठोस काम नहीं किया, बल्कि केवल जनता को बहलाने के लिए टाइम पास किया. उन्होंने नेहरु द्वारा "बोष" को पकड़कर अंग्रेजों को सौंपने का बचन देने का भी बिरोध नहीं किया.
शाहनवाज खान का सम्मान केवल सुभाष चन्द्र बोस के साथी होने के कारण किया जाता है लेकिन उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस के बारे में तथ्य जुटाने या आजाद हिन्द फ़ौज के सेनानियों के लिए ऐसा कुछ नहीं किया जिसकी चर्चा की जा सके.
पापिस्तान में रहने वाला शाहनवाज खान का परिवार भी पपिस्तानी सेना में उच्च पदों पर पहुंचा. 1965 के युद्ध के समय शाहनवाज खान भारत सरकार में कृषि मंत्री थे और उनका बेटा "महेमूद नवाज अली" पापिस्तानी सेना में उच्च अधिकारी था.
उनका बेटा "महेमूद नवाज अली" पापिस्तानी सेना से रिटायर होने के बाद अपने पिता से मिलने भारत आया था. आज भी पापिस्तानी सेना में उनके परिवार के सदस्य उच्च पदों पर हैं. कुछ समय पहले ISI के चीफ रहे "जहीर उल इस्लाम" उनके सगे भतीजे थे.
आजकल कुछ लोग उनको "शाहरुख खान" का नाना भी बता रहे हैं जबकि हकीकत यह है कि - भारत में न उनकी कोई पत्नी थी और न ही कोई बेटी. दरअसल शाहनवाज खान ने एक ऐसी सामाजिक संस्था के सदस्य थे जो गरीब मुस्लिम लड़कियों की शादी करवाती थी.
उस संस्था द्वारा कराये गए ऐसे ही एक सामूहिक विवाह में शाहरुख के माता -पिता शादी हुई थी. शाहरुख खान का शाहनवाज से इससे ज्यादा कोई रिश्ता नहीं था. 9 दिसंबर 1983 को नई दिल्ली में जनरल शाहनवाज खान का देहांत हो गया था .

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