सातवीं शताब्दी में इस्लाम ने जब ईरान पर क़ब्ज़ा कर लिया था और वहां के मूल निवासी पारसियों को मारा तथा धर्म परिवर्तन किया था, तब उनमे से कुछ पारसी अपना धर्म और जान बचाकर भारत आ गए थे. तब से ये पारसी भारत में ही हैं और भारत को ही अपना वतन मानते हैं. भारत के विकास में पारसी समुदाय का बहुत बड़ा योगदान रहा है.
महान वैज्ञानिक "होमी जहाँगीर भाभा" का जन्म मुम्बई के एक सम्पन्न पारसी परिवार में 30 अक्टूबर 1909 को हुआ था. उनके पिता जे. एच. भाभा बंबई के एक प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे. मुम्बई में 10वीं तक पढ़ने के बाद, वे उच्च शिक्षा के लिए 'कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय' चले गए. वहाँ भी उन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया.
इंग्लैण्ड के तमाम विश्व विद्यालय और कम्पनिया मुहमांगी तनखा पर उनको अपने साथ जोड़ना चाहती थीं मगर उन्होंने 1939 में भारत आकर "भारतीय विज्ञान संस्थान" बैंगलोर में भौतिक शास्त्र का प्राध्यापक बनना मंजूर किया. उन दिनों 'भारतीय विज्ञान संस्थान', बैंगलोर में 'सर सी. वी. रमन' भौतिक शास्त्र विभाग के प्रमुख थे.
सर सी. वी. रमन, के मार्गदर्शन से , डॉ. भाभा की प्रतिभा में और भी निखार आया. डा. भाभा भारत में विज्ञान की दयनीय स्थिति से बहुत चिंतित थे. उनका मानना था कि- विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति के बिना देश उन्नति नहीं कर सकता. बैंगलोर में उन्होंने कॉस्मिक किरणों के हार्ड कम्पोनेंट पर, कई उलेखनीय अनुसंधान कार्य कर किये.
डॉ. भाभा नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में विशिष्ट अनुसंधान के लिए एक अलग संस्थान बनाना चाहते थे, लेकिन इसके लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता थी. उन्होंने इसके लिए "सर दोराब जी टाटा ट्रस्ट" से मदद माँगी, जिसे J.R.D.Tata ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. भारतवर्ष के वैज्ञानिक चेतना एवं विकास के लिए यह निर्णायक मोड़ साबित हुआ.
भाभा और टाटा के संयुक्त प्रयास से, 1 जून, 1945 को 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR)' की एक छोटी-सी इकाई का श्रीगणेश हुआ. डॉ. भाभा ने मुम्बई में, पेडर रोड में 'केनिलवर्थ' की एक इमारत का आधा हिस्सा किराये पर लेकर अपना संस्थान प्रारम्भ किया. इस छोटे से संस्थान ने दुनिया के वैज्ञानिकों को आकर्षित करना प्रारम्भ कर दिया.
1949 में उन्होंने अपना संस्थान 'गेट वे ऑफ़ इंडिया' के पास एक इमारत में स्थानांतरित कर दिया, जो 'ओल्ड यॉट क्लब' (OYC) के नाम से जाना जाता है. वे एक विशाल संस्थान का निर्माण करना चाहते थे और इसके लिए बहुत अधिक जगह और धन की आवश्यकता थी. इसके लिए वे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु से मिले और अपने बिचार से अवगत कराया.

24 जनवरी 1966 को एक हवाई दुर्घटना में "डा. भाभा" का दुखद निधन हो गया था. उनकी मृत्यु को लेकर आज भी बहुत से सवाल उठते रहते हैं. उनको लेकर जा रहा एयर इंडिया का विमान स्विटजरलैंड की आलप्स पर्वतमाला में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. इस हादसे के लिए अमेरिका पर संदेह किया जाता है, जो भारत के परमाणु कार्यक्रम को रोकना चाहता था.
कहते हैं कि - डॉ भाभा ने 4 जनवरी 1966 को भारत सरकार को एक गोपनीय प्रस्ताव भेजा था, जिसमें कहा गया था कि - सरकार की अनुमति मिलने पर, हम दो साल के भीतर परमाणु बम बना सकते हैं. इस प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सहमत थे. किन्तु यह खबर लीक हो गई और शास्त्री जी तथा डा. भाभा दोनों की मौत का कारण बनी.
11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई और 24 जनवरी 1966 को विमान दुर्घटना में डा. भाभा के साथ विमान हादसा हो गया. बहुत सारे लोग इसमें सीआईए अथवा केजीबी का हाथ मानते हैं. इसके अलाबा कुछ लोग सुचना लीक करने के मामले में पीएमओ के कर्मचारी के साथ-साथ इंदिरा गांधी को भी संदेह से देखते हैं.
डॉ. भाभा के उत्कृष्ट कार्यों के सम्मान स्वरूप, भारत के प्रशिद्ध "परमाणु ऊर्जा संस्थान", ट्रॉम्बे (AEET) को डॉ. भाभा के नाम पर 'भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र' नाम दिया. आज यह अनुसंधान केन्द्र भारत का गौरव है और विश्व-स्तर पर परमाणु ऊर्जा के विकास में पथप्रदर्शक हो रहा है. डा. भाभा की जन्मदिवस (30 अक्टूबर) पर कोटि नमन ....