Friday, 23 August 2024

देश भर में लगभग सारे ही चोर बाजार मुस्लिम बहुल इलाकों में ही क्यों है ?

मुंबई का चोर बाजार
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भारत के प्रमुख चोर बाजारों में से एक है.. मुंबई का यह चोर बाजार, दक्षिणी मुंबई के मटन स्ट्रीट, मोहम्मद अली रोड के
पास है और मौलाना शौकत अली रोड के बीच स्थित है. इसका निकटतम स्थानीय रेलवे स्टेशन ग्रांट रोड है.

दिल्ली का चोर बाजार
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पुरानी दिल्ली लालकिले और जामा मस्जिद के क्षेत्र में यह साप्ताहिक चोर बाजार लगता है. प्रत्येक रविवार को लगने वाले इस चोर बाजार में आपको ब्रांडेड आयटम लगभग एक चौथाई कीमत में भी मिल जाएंगे। यहाँ घरेलू सामान ज्यादा मिलता है.

मेरठ का चोर बाजार
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चोरी की गाड़ियों और गाड़ियों के स्पेयर पार्ट के लिए पुरे भारत में मेरठ का सोती गंज चोर बाजार सबसे ज्यादा कुख्यात है. यह मेरठ में जकारिया मस्जिद, अनारवाली मस्जिद और मीनार मस्जिद के बीच का
इलाका है. यह ऐसा इलाका है जहाँ पुलिस भी जाने से डरती है.

बंगलुरु का चोर बाजार
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ये मार्केट बेंगलुरु में चिकपेट नामक जगह पर, बीवीके अयंगर रोड पर, नालडवाडी मस्जिद के पास लगती है. यह साप्ताहिक बाजार है जो केवल सन्डे को लगता है. यहां सेकेंड हैंड गुड्स, चोरी के गैजेट्स, कैमरा, इलेक्ट्रॉनिक आइटम और सस्ते जिम इक्विपमेंट मिलते हैं.

चेन्नई का चोर बाजार
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चेन्नई का चोर बाजार, सेन्ट्रल चेन्नई के ऑटो नगर इलाके में स्थित है. कहने को तो ये लोग कारों को मॉडिफाई करने का काम करते हैं लेकिन ये लोग गाड़ियों के ऑरिजनल पार्ट्स और कार को बदलने के लिए कुख्यात है. ये मार्केट एग्मोर ट्रेन स्टेशन से 1 किलोमीटर दूर है.
इन प्रशिद्ध चोर बाजारों के अलाबा भी विभिन्न शहरों के चोर बाजार पर नजर डालेंगे तो वहां भी ऐसे ही नज़ारे दिखाई देंगे, आसपास कोई मुस्लिम बस्ती होगी या उस शहर की कोई ख़ास मस्जिद होगी.
कोलकता मे मल्लिक बजार, लखनऊ का नख्खासा बाजार, रामपुर का रजा बाजार, आदि भी ऐसे ही चोर बाजार है. बाक़ी अपने अपने शहर के चोर बाजार के बारे में आप कमेंट बॉक्स में बताने की कृपा करे, जिससे उनका नाम भी पोस्ट में जोड़ा जा सके.

क्या अंग्रेजों ने भारत पर 200 साल तक शासन किया

 अक्सर लोग बोलते हैं कि अंग्रेजों ने भारत पर 200 साल तक राज किया. मुझे तो यह बात एकदम झूठ लगती है. मुझे आजतक समझ नहीं आया कि आखिर अंग्रेजों ने भारत पर 200 साल तक राज कैसे किया ? भारत पर अंग्रेजों के 200 तक राज करने का अर्थ है कि अंग्रेजों ने 1747 के आसपास के समय से लेकर 1947 तक भारत पर राज किया हो.

जहाँ तक मेरी जानकारी है उसके अनुसार 1857 तक देश के ज्यादातर क्षेत्र में मुस्लिम, हिन्दू एवं सिख राजाओं का राज रहा. जब 1757, 1761, 1762 में अफगान हमलाबर अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर हमला किया उस इतिहास में भी कहीं अंग्रेजों का जिक्र नहीं आता है. उसकी लड़ाई जाटों (1757), मराठों (1761) और सिखों (1762) से हुई थी
अंग्रेजों ने 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में बंगाल के तत्कालीन नवाब सिराज़ुद्दौला से लड़ाई हुई थी जिसमें क्लाइव ने मीर जाफर की गद्दारी के कारण प्लासी के युद्ध में नबाब सिराजुद्दौला को हरा दिया था. उस लड़ाई के बाद अंग्रेजों का मुर्शीदाबाद पर अधिकार हो गया था. लेकिन एक मुर्शीदाबाद को तो भारत नहीं माना जा सकता है.
उसके बाद भी लम्बे समय तक कहीं हिन्दू, कहीं मुस्लिम, कहीं सिक्ख राजाओं का अधिकार बना रहा. राजस्थान, बुंदेलखंड, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, हरियाणा, आदि पर हिन्दुओं का राज रहा. दिल्ली, हैदराबाद, अवध, रुहेलखंड, मैसूर, आदि पर मुस्लिम नबाबों का भी कब्ज़ा बना रहा. महाराजा रणजीत सिंह ने भी पंजाब पर 1801 से 1839 तक शासन किया.
1858 के बाद अवश्य भारत पर अंग्रेजों (ब्रिटिश संसद) का कब्ज़ा हो गया. तब कुछ भारतीय राजाओं और नबाबों ने भी अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली लेकिन उसके बाद भी भारत की देशभक्त जनता ने अंग्रेजों को आराम से शासन नहीं करने दिया गया. अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी अभियान लगातार चलते रहे, जिसमे कभी भारतीय जीते और कभी अंग्रेज.
पंजाब में नामधारी समुदाय के सतगुरु रामसिंह जी महाराज ने अंग्रेजों के खिलाफ अभियान चलाया, बिहार के वनवासी क्षेत्र में विरसा मुंडा के नेतृत्व में भी क्रान्ति चलती रही. उत्तर प्रदेश और बंगाल में भी अंग्रेजों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया गया. तब अंग्रेजों ने भारतीयों के बीच पैठ बनाने के लिए अंग्रेज टाइप भारतीयों को लेकर कांग्रेस पार्टी की स्थापना की.
1885 में अंग्रेजों द्वारा कांग्रेस पार्टी बनाने से भारतीय भ्रमित हो गए और लगभग 20 के तक क्रांतिकारी अभियानों में कमी आ गई. लेकिन जल्द ही भारतीय अंग्रेजों की इस चाल को लोग समझ गए और उन्होंने अंग्रेजों और कांग्रेस के खिलाफ अपने संगठन ( युगांतर, अनुशीलन समिति, अभिनव भारत, हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग, आदि) बनाने प्रारम्भ कर दिए.
1907 में आई वीर सावरकर की किताब (1857:प्रथम स्वातंत्र्य समर) के बाद तो देश में जैसे क्रान्ति का ज्वार ही उठ पड़ा हुआ. 1857 में जो क्रान्ति हुई थी उसमे अंग्रेजों के खिलाफ या तो अंग्रेजी सेना के बागी भारतीय सैनिक थे या भारतीय राजा और नबाब, लेकिन 1907 के बाद आम भारतीय नागरिक भी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी कार्यवाहियां करने लगे.
1907 से लेकर 1915 तक पूरे देश में अनेकों क्रांतिकारी घटनाएं हुई जिसमे अनेकों अंग्रेज और अंग्रेजों के चापलूस भारतीय गद्दार मारे गए. इस दौर में अनेकों क्रांतिकारियों को फांसी और कालापानी की सजा हुई. तब 1915 में कांग्रेस द्वारा गांधी जी को भारत में लाया गया और उनके आने के बाद एक बार फिर कुछ समय के लिए क्रांतिकारी अभियानों में कमी आ गई.
लेकिन 1919 से एक बार फिर भारतीय पूरी ताकत के साथ अंग्रेजों से लड़ने लगे और 1947 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के बाद ही दम लिया. अब मुझे कोई बताये कि अंग्रेजो ने कैसे भारत पर 200 साल राज किया क्योंकि मेरी जानकारी के अनुसार तो ये 90 साल से ज्यादा नहीं बैठता है और इन 90 साल में भी देशभक्त भारतीयों ने उन्हें कभी चैन नहीं लेने दिया.
अंग्रेज भारत से जाते जाते, अपनी बनाई पार्टी कांग्रेस को भारत की सत्ता सौंप गए. कहीं ऐसा तो नहीं है कि मुगलों के पाप को छुपाने के लिए ऐसे लोगों पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है जो कि भारत से जा चुके थे और भारत की दुर्दशा का जिम्मेदार मुगलों को बताने के बजाए अंग्रेजों को बताने के लिए अंग्रेजों का कार्यकाल बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है.
क्योंकि अगर अंग्रेजों का कार्यकाल कम करके बताया जाएगा तो कोई भी प्रश्न कर देगा कि महज 90 साल में ही अंग्रेजों ने इतना कैसे लूट लिया जबकि इन 90 वर्षों में भी लगातार आजादी की लड़ाई चल ही रही थी. इसके बाद फिर भारत के बर्बादी की सारी जिम्मेदारी मुगलों पर आ जायेगी जो तथाकथित सेक्युलरो को मंजूर नहीं है.