लेकिन दबाब पड़ने पर मुझे जाना पड़ा. बहा जाने पर पता चला कि - यहाँ के लोगों में हम में तो कोई फर्क ही नहीं है. वहां के लोग हम लोगों को शुरू में भले ही ज्यादा लिफ्ट न दें, लेकिन एक बार आप पर विशवास हो जाए तो आपके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.
नार्थईस्ट के शेष भारत से न घुलमिल पाने की सबसे बड़ी बजह ईसाई मिशनरियों द्वारा पैदा की गई गलतफहमियां थी. ईसाई मिशनरियों ने नार्थईस्ट के लोगों के बीच अपने ईसाई धर्म के प्रचार के साथ उनके मन में शेष भारत के प्रति नफरत भरने का भी काम किया था.
आजादी के बाद भी हमारी सरकारों ने इसाई मिशनरियों द्वारा किये जाने वाले कुप्रचार पर कोई रोक नहीं लगाई. कांग्रेस तो बैसे भी हमेशा जाती / धर्म / क्षेत्र के ब्लोक बनाकर उनको एक दुसरे से डराकर राजनीति करती थी. इसी के कारण वहां अलगाववाद फैला.
इसाई मिशनरियों का प्रपंच और कांग्रेस / क्षेत्रीय दलों की उठापटक ही कम नहीं थी कि - एक नही मुसीबत के रूप में बंगलादेशी मुसलमान वहां पहुँचने लगे. जब तक इनकी संख्या कम थी ये छोटे छोटे काम करते रहे, लेकिन संख्या बढ़ जाने पर यह अपराध करने लगे.
इन सभी कारणों से नार्थईस्ट में अलगाववाद और आतंकवाद फैलने लगा जिससे नार्थईस्ट और शेष भारत में और ज्यादा दूरी बढ़ गई. ऐसे समय समय में कुछ राष्ट्रवादी संगठनों ने उनके बीच जाकर काम करना तथा उनकी समस्याओं को समझना शुरू किया.
उनके बीच रहकर उनको शेष भारत से उनके जुडाब को समझाया. मणिपुर का अर्जुन से रिश्ता समझाया, माँ कामाख्या, शिवसागर और परशुराम कुण्ड जैसे पौराणिक तीर्थ स्थलों पर उनको भी जाने को प्रेरित किया, त्रिपुरा के उनाकोटि शिव मंदिरों की जानकारी दी.
आज नार्थईस्ट की राजनीति में भी छल प्रपंच करने वाली पार्टियों का प्रभाव कम हो रहा है तथा राष्ट्रवादी पार्टियों का प्रभाव बढ़ रहा है. इसके साथ साथ सरकार को नार्थईस्ट में बंगलादेशी घुसपैठियों तथा इसाई मिशनरियों से कड़ाई से निपटना चाहिए.
हम उम्मीद करते है कि - वर्तमान सरकार नार्थईस्ट में धार्मिक पर्यटन को बढ़ाबा देने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगी. इसके अलावा वहा के जंगल, पहाड़, नदी, नदीद्वीप, बागान, आदि में रिसार्ट्स बनाने के लिए निवेशकों को प्रोत्साहित करना चाहिए.
मेजी की अग्नि को भीष्म पितामह की चिता माना जाता है. जिन्होंने महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद, हस्तिनापुर को युधिष्ठिर के हाथों में सुरक्षित मानकर, सूर्य भगवान् के उत्तरायण में आने पर, मकर संक्रांति की सुबह अपनी इच्छा से अपना शरीर त्याग दिया था.