Saturday, 30 December 2023

समाज की व्यवस्था

समाज की व्यवस्था को आसान शब्दों में समझाने के लिए बताया जाना तुम्हे समझ नहीं आता है क्योंकि तुम समझना ही नहीं चाहते हो. ऐसा नहीं है कि तुम्हे समझ नहीं आता है. तुम्हे सब समझ आता है लेकिन समाज को आपस में लड़ाकर राजनीति करना तुम्हारा पेशा है.

सृष्टि को मानव का रूप देकर समझाया गया है कि जिस तरह मानव शरीर में गर्दन का ऊपरी भाग समस्त बौद्धिक कार्य (सोंचने, समझने, देखने, सुनने और बोलने) का काम करता है, उसी तरह समाज में ब्राह्मण बौद्धिक कार्य (अध्यन, अध्यापन, लेखन, जन जागरण, आदि) करता है.
मानव शरीर में सारा पराक्रम भुजाओं द्वारा किया जाता है. पराक्रम से राष्ट्र और समाज की रक्षा की जा सकती है. समाज की व्यवस्था चलाने और समाज की रक्षा का दायित्व क्षत्रियो ने ले रखा है. इसलिए मानव देह रूपी सृष्टि में क्षत्रीय का स्थान भुजाओ में माना गया है.
पेट में भोजन जाता है और पेट में जाने वाले भोजन से ही सारे शरीर को ऊर्जा मिलती है. पेट सारे शरीर को ऊर्जा की सप्लाई न करे तो न दिमाग काम करेगा न ही हाथ / पैर. इसलिए उत्पादन और वितरण करने वाले व्यापारी को मानव देह रूपी सृष्टि में पेट का स्थान वैश्य को दिया गया है.
पूरा समाज जिसकी मेहनत पर खड़ा होता है उसे मानव रूपी सृष्टि में पैर का स्थान दिया गया है. क्या कोई यह कह सकता है कि मानव शरीर में पैर का महत्त्व कम है ? समाज के मेहनतकश वर्ग को शूद्र नाम दिया गया है और उसे मानव शरीर रुपया सृष्टि को चलाने वाला पैर कहा गया है.
बाकी कोई न किसी के मुँह से पैदा हुआ है और न पेट से , न भुजाओं से पैदा हुआ है और न पैर से. यह तो केवल समाज की व्यवस्था को समझने के लिये समाज के मानवीय स्वरूप की कल्पना मात्र है और उसमे लोगो के कार्य के अनुसार स्थान देकर उनका महत्त्व समझाया गया है