मानव शरीर में सारा पराक्रम भुजाओं द्वारा किया जाता है. पराक्रम से राष्ट्र और समाज की रक्षा की जा सकती है. समाज की व्यवस्था चलाने और समाज की रक्षा का दायित्व क्षत्रियो ने ले रखा है. इसलिए मानव देह रूपी सृष्टि में क्षत्रीय का स्थान भुजाओ में माना गया है.
पेट में भोजन जाता है और पेट में जाने वाले भोजन से ही सारे शरीर को ऊर्जा मिलती है. पेट सारे शरीर को ऊर्जा की सप्लाई न करे तो न दिमाग काम करेगा न ही हाथ / पैर. इसलिए उत्पादन और वितरण करने वाले व्यापारी को मानव देह रूपी सृष्टि में पेट का स्थान वैश्य को दिया गया है.
पूरा समाज जिसकी मेहनत पर खड़ा होता है उसे मानव रूपी सृष्टि में पैर का स्थान दिया गया है. क्या कोई यह कह सकता है कि मानव शरीर में पैर का महत्त्व कम है ? समाज के मेहनतकश वर्ग को शूद्र नाम दिया गया है और उसे मानव शरीर रुपया सृष्टि को चलाने वाला पैर कहा गया है.