Friday, 26 May 2023

सेंगोल राजदंड

"सेंगोल" एक राजदंड है. इसे दक्षिण भारत के भगवान् शिव के प्राचीन मंदिर में भगवान शिव के हाथ में दिखाया जाता है. महाभारत में भी राजदंड का जिक्र है. महान शिवभक्त चोल राजा ने भगवान् शिव की मूर्ति में दिखाए "सेंगोल" की तरह का स्वर्ण का संगोल बनबाया. उनके 500 वर्ष के लंबे शासनकाल में सत्ता हस्तांतरित करते समय अपने उत्तराधिकारी को सौंपते थे.

यह पवित्र राजदंड वैदिक पुजारियों द्वारा पहले गंगाजल से पवित्र किया जाता है. फिर निवर्तमान शासक नए शासक को इसे सौंपते थे. ब्रिटिश राज में यह गायब हो गया, माना जाता है कि इसे अंग्रेज ले गए थे. 1947 में आजादी के समय राजगोपालाचारी के अनुरोध पर कि भारतीय संस्कृति से सत्ता हस्तांतरण करने की इस प्रक्रिया पर नेहरू तैयार हो गये थे.
1947 चेन्नई के सुनारों ने प्राचीन "सेंगोल" जैसा एक और सेंगोल बनाया. इसे पहले माउंटबेटन को दिया गया. माउंटबेटन से लेकर पुजारियों ने इसे मंत्रोच्चार और गंगाजल से पवित्र किया और नेहरू को सौंप दिया. यह अनुष्ठान तमिलनाडु के शैव मठ थिवरुदुथुराई के महायाजकों ने संपन्न कराया गया था. उस समय इसे परम्परा बनाने की बात कही गई थी.
उस समय कहा गया था कि आगे से सत्ता हस्तांतरण के समय निवर्तमान प्रधानमंत्री नए प्रधानमंत्री के हाथ में इस "सेंगोल" को देगा लेकिन इस परम्परा को निभाया नहीं गया और धीरे धीरे लोग इसे भूल गए. तमिलनाडु की एक कलाकार पद्मा सुब्रमण्यम ने जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके बारे में बताया गया तो उस सेंगोल की खोज शुरू हुई.
यह सेंगोल प्रयागराज स्थित नेहरू के घर आनंद भवन (जो आजकल एक संग्रहालय है) में मिला. वहां इसे सेंगोल राजदंड के बजाये नेहरू की छड़ी कहकर रखा गया था. सेंगोल पर गोल पृथ्वी बनी है और उस पर भगवान शिव के वाहन नंदी हैं. अब यह सनातन धर्म के राजधर्म का एक प्रतीक अब नई संसद में लोकसभा अध्यक्ष की पीठ के पास स्थापित होगा,
लेकिन सवाल उठता है कि 1947 से इसे क्यों छुपाया गया ? बाद में परंपरा का पालन क्यों नहीं किया जाता है ? इसे गायब किसने किया ? क्या यह विशेष समुदाय को खुश करने के लिए है ? सेंगोल को नेहरू को सौंपा गया था. सेंगोल पर तमिल में खुदा है : यह हमारा आदेश है कि भगवान (शिव) के अनुयायी राजा शासन करेंगे.
तथाकथित सेकुलर दलों द्वारा नई संसद के उदघाटन का बहिष्कार करने की सबसे बड़ी बजह यही है कि वे लोग इस सनातन सभ्यता की पुनर्स्थापना के कार्यक्रम से दूर रहना चाहते हैं. 1947 में मूल सेंगोल बनाने में शामिल रहे दो सोनारों 96 वर्षीय वुम्मिदी एथिराजुलु और 88 वर्षीय वुम्मिदी सुधाकर को भी नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में बुलाया गया है.
तमिल विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एस. राजावेलु ने कहा कि राजाओं के राज्याभिषेक का नेतृत्व करने और सत्ता के हस्तांतरण को पवित्र करने के लिए आध्यात्मिक गुरुओं की यह एक पारंपरिक चोल परम्परा थी, जिसे शासक को मान्यता देने के तौर पर देखा जाता था. उन्होंने कहा, ''तमिल राजाओं के पास यह सेंगोल (राजदंड के लिए तमिल शब्द) था, जो न्याय और सुशासन का प्रतीक है.
प्रमुख शैव मठों से जुड़े पी.टी. चोकलिंगम ने कहा, ''यह हमारे राजाजी (सी राजगोपालाचारी, भारत के अंतिम गवर्नर जनरल) थे जिन्होंने नेहरू को आश्वस्त किया कि इस तरह के समारोह की आवश्यकता है क्योंकि भारत की अपनी परंपराएं हैं और संप्रभु सत्ता के हस्तांतरण की अगुवाई एक आध्यात्मिक गुरु द्वारा की जानी चाहिए।''
राजावेलु ने बताया कि प्राचीन शैव मठ थिरुववदुथुराई आदिनम मठ के प्रमुख ने नेहरू को 1947 में सेंगोल भेंट किया था. 14 अगस्त, 1947 को सत्ता के हस्तांतरण के समय, तीन लोगों को विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था – अधीनम के उप मुख्य पुजारी, नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई और ओथुवर (गायक) – जो सेंगोल लेकर आए थे और कार्यवाही का संचालन किया था।
लेकिन हमें भारत की इस बहुमूल्य विरासत के बजाय टीपू की मनहूस तलवार के बारे में बताया जाता है जो 1799 से अंग्रेजों की प्रॉपर्टी है. 20 साल पहले विजय माल्या ने भी इस तलवार को खरीदा था और उसके बाद ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए थे. टीपू भी इस तलवार के साथ युद्ध नहीं जीत पाया था और युद्ध के मैदान में मारा गया था. विजय माल्या ने इसे अशुभ घोषित किया था.

Thursday, 18 May 2023

लुधियाना (पंजाब) के प्रमुख तीर्थ स्थल

 माँ बगलामुखी धाम, पक्खोवाल रोड  (लुधियाना)

यह मंदिर भारत के पंजाब प्रांत के लुधियाना नगर में पक्खोवाल रोड पर स्थित है. अभी इस मंदिर का निर्माण हुए मात्र 10 बर्ष ही हुए है लेकिन मंदिर के महंत श्री Parveen Choudhary जी ने अपने प्रयासों से बहुत ही लोकप्रियं मंदिर बना दिया है. यहाँ प्रत्येक गुरूवार को सार्वजानिक हवन होता है जिसमे कोई भी भक्त भाग लेकर आहुति डाल सकता है.
 इसके अलावा यहाँ हर साल फरवरी माह में बहुत ही भव्य स्तर पर अखंड महायज्ञ का आयोजन किया जाता है. यहां यज्ञ लगातार दस दिन तक दिन रात चलता है और लाखों की संख्या में आहुति दी जाती है. कोई भी भक्त निशुल्क इसमें सम्मिलित हो सकता है. लंगर की ऐसी व्यवस्था रहती है कि आने वाले नए श्रद्धालु तो देखकर आश्चर्यचकित रह जाए है

मां बगलामुखी के यज्ञ में सम्मिलित होकर आहुति डालना बहुत ही सौभाग्य की बात है. मैं खुद भी माता बगलामुखी के प्रति बहुत आस्था रखता हूँ. जब भी मुझे कोई मुश्किल महसूस होती है तो मैं मां बगलामुखी धाम जाकर यज्ञ में शामिल होता हूँ और मैंने हर बार माता बगलामुखी के आशीर्वाद से उस मुश्किल पर विजय प्राप्त की है.

श्री जगन्नाथ धाम धाम, फिरोजपुर रोड (लुधियाना)

यह मंदिर भारत के पंजाब प्रांत के लुधियाना नगर में फिरोजपुर रोड पर स्थित है. इस मंदिर में भगववान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और बलराम का सुन्दर स्वरूप है. मंदिर में जन्माष्टमी, दशहरा और मकर संक्रांन्ति (पतंग उत्सव) का उत्सव बहुत ही भव्य रूप से मनाया जाता है.
इसके अलावा श्री जगन्नाथ धाम धाम ट्रस्ट द्वारा लुधियाना शहर में लगभग 25 बूथ लगा कर, उन बूथों के माध्यम से 10 रुपय में भरपेट खाना उपलब्ध कराया जाता है, जिसमे बिना किसी जाति धर्म के भेदभाव के कोई भी भोजन कर सकता है

श्री गोविन्द गौधाम मंदिर, हंबड़ां रोड (लुधियाना)
लुधियाना में राधा कृष्ण जी का बहुत ही भव्य मंदिर है - श्री गोविन्द गौधाम मंदिर. इस भव्य मंदिर में राधा कृष्ण जी की अत्यंत सुन्दर प्रतिमा है जिसका प्रतिदिन अलग अलग प्रकार से श्रृंगार किया जाता है. आप जब भी उनकी छवि देखते हैं तो लगता है कि - जैसे आज की छवि ही सबसे न्यारी है. मंदिर के साथ एक बहुत ही विशाल गौशाला है जिसमे भारतीय देशी नश्ल की हजारों गाये रहती है. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इन्हे अपने हाथो से चारा और लड्डू अदि खिलाते हैं. यहाँ पर स्वस्थ और अस्वस्थ गायों को अलग रखा जाता है तथा बीमार गायों के उपचार की बहुत ही उत्तम व्यवस्था है श्री गोविन्द गौधाम मंदिर में रविवार की शाम बहुत ही आनंद दायक होती है. इस दिन मंदिर में विशेष पालकी यात्रा निकलती और विशेष ध्वज पूजन होता है जिसकी सेवा लेने के लिए काफी समय पहले बुकिंग करानी पड़ती है. अलग अलग त्योहारों पर भी यहाँ भव्य आयोजन किये जाते हैं

श्री कृष्णा मंदिर, मॉडल टाउन लुधियाना 






श्री दुर्गामाता मन्दिर, सिविल लाईन, समीप - जगराओं पुल, लुधियाना 







श्री मुक्तेश्वर महादेव धाम, चंडीगढ़ रोड, ग्राम - चाहिलां, लुधियाना







श्री शनिधाम मंदिर, शनिगांव, फिल्लौर (समीप - लुधियाना)





संकट मोचन श्री हनुमान मंदिर, फिल्लौर (समीप - लुधियाना)







प्राचीन महादेव मंदिर, पायल (समीप - लुधियाना)