यह पवित्र राजदंड वैदिक पुजारियों द्वारा पहले गंगाजल से पवित्र किया जाता है. फिर निवर्तमान शासक नए शासक को इसे सौंपते थे. ब्रिटिश राज में यह गायब हो गया, माना जाता है कि इसे अंग्रेज ले गए थे. 1947 में आजादी के समय राजगोपालाचारी के अनुरोध पर कि भारतीय संस्कृति से सत्ता हस्तांतरण करने की इस प्रक्रिया पर नेहरू तैयार हो गये थे.
उस समय कहा गया था कि आगे से सत्ता हस्तांतरण के समय निवर्तमान प्रधानमंत्री नए प्रधानमंत्री के हाथ में इस "सेंगोल" को देगा लेकिन इस परम्परा को निभाया नहीं गया और धीरे धीरे लोग इसे भूल गए. तमिलनाडु की एक कलाकार पद्मा सुब्रमण्यम ने जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके बारे में बताया गया तो उस सेंगोल की खोज शुरू हुई.
यह सेंगोल प्रयागराज स्थित नेहरू के घर आनंद भवन (जो आजकल एक संग्रहालय है) में मिला. वहां इसे सेंगोल राजदंड के बजाये नेहरू की छड़ी कहकर रखा गया था. सेंगोल पर गोल पृथ्वी बनी है और उस पर भगवान शिव के वाहन नंदी हैं. अब यह सनातन धर्म के राजधर्म का एक प्रतीक अब नई संसद में लोकसभा अध्यक्ष की पीठ के पास स्थापित होगा,
लेकिन सवाल उठता है कि 1947 से इसे क्यों छुपाया गया ? बाद में परंपरा का पालन क्यों नहीं किया जाता है ? इसे गायब किसने किया ? क्या यह विशेष समुदाय को खुश करने के लिए है ? सेंगोल को नेहरू को सौंपा गया था. सेंगोल पर तमिल में खुदा है : यह हमारा आदेश है कि भगवान (शिव) के अनुयायी राजा शासन करेंगे.
तथाकथित सेकुलर दलों द्वारा नई संसद के उदघाटन का बहिष्कार करने की सबसे बड़ी बजह यही है कि वे लोग इस सनातन सभ्यता की पुनर्स्थापना के कार्यक्रम से दूर रहना चाहते हैं. 1947 में मूल सेंगोल बनाने में शामिल रहे दो सोनारों 96 वर्षीय वुम्मिदी एथिराजुलु और 88 वर्षीय वुम्मिदी सुधाकर को भी नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में बुलाया गया है.
तमिल विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एस. राजावेलु ने कहा कि राजाओं के राज्याभिषेक का नेतृत्व करने और सत्ता के हस्तांतरण को पवित्र करने के लिए आध्यात्मिक गुरुओं की यह एक पारंपरिक चोल परम्परा थी, जिसे शासक को मान्यता देने के तौर पर देखा जाता था. उन्होंने कहा, ''तमिल राजाओं के पास यह सेंगोल (राजदंड के लिए तमिल शब्द) था, जो न्याय और सुशासन का प्रतीक है.
प्रमुख शैव मठों से जुड़े पी.टी. चोकलिंगम ने कहा, ''यह हमारे राजाजी (सी राजगोपालाचारी, भारत के अंतिम गवर्नर जनरल) थे जिन्होंने नेहरू को आश्वस्त किया कि इस तरह के समारोह की आवश्यकता है क्योंकि भारत की अपनी परंपराएं हैं और संप्रभु सत्ता के हस्तांतरण की अगुवाई एक आध्यात्मिक गुरु द्वारा की जानी चाहिए।''
राजावेलु ने बताया कि प्राचीन शैव मठ थिरुववदुथुराई आदिनम मठ के प्रमुख ने नेहरू को 1947 में सेंगोल भेंट किया था. 14 अगस्त, 1947 को सत्ता के हस्तांतरण के समय, तीन लोगों को विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था – अधीनम के उप मुख्य पुजारी, नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई और ओथुवर (गायक) – जो सेंगोल लेकर आए थे और कार्यवाही का संचालन किया था।
लेकिन हमें भारत की इस बहुमूल्य विरासत के बजाय टीपू की मनहूस तलवार के बारे में बताया जाता है जो 1799 से अंग्रेजों की प्रॉपर्टी है. 20 साल पहले विजय माल्या ने भी इस तलवार को खरीदा था और उसके बाद ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए थे. टीपू भी इस तलवार के साथ युद्ध नहीं जीत पाया था और युद्ध के मैदान में मारा गया था. विजय माल्या ने इसे अशुभ घोषित किया था.