Sunday, 13 March 2022

जम्मू & कश्मीर की हिंसा कोई राजनैतिक हिंसा नहीं थी बल्कि "गज्बा ए हिन्द" की शुरआत थी

19 जनवरी 1990 को एक साथ पूरी कश्मीर घाटी में एक साथ हिन्दुओं का कत्लेआम किया जाने लगा. उनकी ह्त्या करने वाले कोई विदेशी हमलावर नहीं थे बल्कि उनके अपने पड़ोसी मुस्लमान थे जिनके साथ वो बर्षों से रह रहे थे. वो हिन्दुओं को मार रहे थे और कह रहे थे कि या तो धर्म छोड़ दो या कश्मीर. अपनी औरतों को छोड़कर कश्मीर से भाग जाओ.
जब इस घटना का जिक्र करो यो अंधविरोधी उन कश्मीरी मुसलमानो के खिलाफ बोलने के बजाय, उस घटना का दोष उस समय की वी. पी. सिंह सरकार को समर्थन देने वाली भाजपा पर डालने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा वे जगमोहन मल्होत्रा पर भी आरोप मढ़ने की कोशिश करते हैं जो उसी दिन जम्मू & कश्मीर के राज्य पाल बनाये गए थे.
अब सवाल यह है कि - अगर केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी, उप प्रधानमंत्री देवीलाल थे, गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद थे, सरकार को भाजपा / वामपंथी बाहर से समर्थन दे रहे थे और कश्मीर के राजयपाल जगमोहन मल्होत्रा थे, तो क्या उन कश्मीरी मुसलमानो को निर्दोष मान लिया जाए जो अपने अपने पड़ोसी हिंदुओं को बर्बरता पूर्वक मार रहे थे ?
कश्मीर में हिन्दुओं के नरसंहार का केवल एक ही कारण था और वह था "गज्बा ए हिंद" की अवधारणा. कश्मीर मुस्लिम बहुल हो चुका था और उनको केवल कोई बहाना चाहिए था. उनको यह बहाना मिला था इस समय की राज्य सरकार को बर्खाश्त करने के से. कश्मीर में काफी दिनों से हिंसा हो रही थी जिसकी बजह से फारुख सरकार को बर्खाश्त किया गया था.
1989 से 1990 के दौरान फारुक अब्दुल्ला की सरकार थी. उस दौर में जेहादियों द्वारा हिन्दुओं पर लगातर हमले हो रहे थे. फारुख अब्दुल्ला सरकार हिन्दुओं को सुरक्षा देने और दहशतगर्दों को रोकने में नाकाम रही थी. इसकी बजह से 19 जनवरी 1990 को तत्कालीन वी.पी. सिंह सरकार ने फारुख अब्दुल्ला की राज्य सरकार को बर्खाश्त कर दिया गया.
इस बर्खाश्तगी का विरोध करने के लिए फारुख अब्दुल्ला के समर्थक सड़को पर आ गए और केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे. केंद्र सरकार के खिलाफ होने वाला यह प्रदर्शन देखते ही देखते हिन्दुओं के ऊपर हमलों में बदल गया. मस्जिदों के लाऊडस्पीकरो से हिन्दुओ को धर्म छोड़ने या कश्मीर छोड़ने के लिए कहा जाने लगा.
अनेको हिन्दू अपने ही पडोसियो द्वारा बर्बरता पूर्वक मार दिए गए. अनेको हिन्दू लड़कियों का बलात्कार कर हत्या कर दी गई. अनेकों घरों को आग के हवाले कर दिया गया. हालत बेक़ाबू हो गए थे. तब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के राजयपाल के. वी. कृष्णा राव को हटाकर उनकी जगह जगमोहन मल्होत्रा को जम्मू कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया.
जगमोहन मल्होत्रा पहले भी 5 साल तक (अप्रैल 1984 से लेकर जुलाई 1989 तक) जम्मू & कश्मीर के राज्यपाल रह चुके थे. 20 जनवरी को चार्ज सम्हालने के बाद उन्होंने पुलिस और सेना के सहयोग से हालत सम्हालने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. तब उन्होंने सेना की सहायता से हिन्दुओं को ट्रकों द्वारा मुस्लिम बहुल इलाको से बाहर निकलवाने का काम किया
उन्होंने लाखों हिन्दुओं को जेहादियों से बचाकर हिन्दू बहुल जम्मू में पहुंचाया. वहां उनके रुकने, रहने, खाने की अस्थाई व्यवस्था की. अगर कोई कहता है कि - कश्मीर के विशाल इलाके में दूर -दूर रहने वाले लाखों हिन्दू, केवल एक गवर्नर के फुसलाने पर अपना घरवार छोड़कर कैंपों में रहने के लिए चले आये, तो यह बिचार ही केवल उनके मानसिक दिवालियेपन का सबूत है.
और हाँ तब तक जगमोहन मल्होत्रा जी का भाजपा से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था. "जगमोहन" प्रधानमंत्री "इंदिरा गांधी" के बहुत खास ब्यूरोक्रेट थे. इंदिरा ने आपात काल (1975 से 1977) में उनके हाथ में काफी शक्तियां प्रदान की थी, आपातकाल के दिनों में ब्योरोकेशी के ऊपर उनका सीधा नियंत्रण था और वे इंदिरा गांधी / संजय गांधी को सीधे रिपोर्ट करते थे.
1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद उनको खुड्डे लाइन लगा दिया गया और जबरन रिटायर कर दिया गया. 1980 में फिर से कांग्रेस की सरकार बनने पर "इंदिरा" ने "जगमोहन" को बहुत बड़ी जिम्मेदारियां दी थीं. उनको पहले गोवा -दमन-दीव का और फिर उनको दिल्ली का राज्यपाल बनाया.
एशियाड -82 के आयोजन की भी सारी जिम्मेदारी उनके पास थी. इंदिरा गांधी ने ही अप्रेल 1984 में जगमोहन को जम्मू & कश्मीर का राज्यपाल बनाया था. इंदिरा की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी के लगभग पूरे शासन काल में ( जुलाई 1989 तक) वे "जम्मू एवं कश्मीर" के राज्यपाल बने रहे. तब तक भारतीय जनता पार्टी से कोई भी वास्ता नहीं था.
कश्मीर में बे-हिसाब हिन्दुओं का लूटा व मारा गया और उनकी स्त्रियों को बे-आबरू किया किया. हिन्दुओं के घरों पर नोटिस लगा दिया जाता था कि - अपनी औरतों को छोड़ कर कश्मीर से चले जाओ. उस समय हिन्दुओं को जेहादियों से बचाने वाले जगमोहन, बाद में भी लगातार सरकारों से अपील करते रहे कि कश्मीर में सख्त कार्यवाही की जाय.
वी पी सिंह सरकार और चंद्र शेखर सरकार से तो कोई उम्मीद रखना ही बेकार था लेकिन बाद पी वी नरसिंहाराव (कांग्रेस) सरकार भी कश्मीर के हालात से उदासीन बनी रही. जगमोहन हर मंच से कश्मीर के हालात पर आवाज उठाते रहे लेकिन उनको नजरअंदाज किया जाता रहा, उस समय केवल भाजपा ने उनके नजरिये का समर्थन किया।
तब उन्होंने 1995 में "कांग्रेस" छोड़कर, "भाजपा" ज्वाइन की थी. इसलिए उनके "जम्मू एवं कश्मीर" का राज्यपाल रहते हुए किसी भी कार्यवाही को भाजपा से जोड़ना केवल बात को घुमाना है. "जम्मू एवं कश्मीर" का राज्यपाल रहते हुए उनका भाजपा से कोई सम्बन्ध नहीं था. वे तो बाद में राष्ट्रवादी नीतियों के कारण कई साल बाद भाजपा में आये थे.
Ashutosh Srivastava, Sanjeev Saxena and 4 others
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Wednesday, 2 March 2022

भारतीय युद्ध प्रणाली बनाम इस्लामी युद्ध प्रणाली

प्राचीन भारत में जब कोई राजा अपने राज्य का विस्तार करने की खातिर किसी अन्य राज्य पर आक्रमण करता था तो भी उनकी प्रजा अप्रभावित रहती थी. दोनों राजा अपनी अपनी सेना लेकर किसी निर्जन स्थान पर युद्ध करते थे जिससे प्रजा को कोई परेशानी न हो. युद्ध जीतने वाले राजा को, युद्ध हारने वाले राज्य की प्रजा अपना राजा मान लेती थी.

युद्ध के समय भी युद्ध के नियम होते थे. सूर्यास्त के बाद दोनों तरफ के सैनिक एक दूसरे से मिल सकते थे. युद्ध में हारने वाले राजा की सेना भी युद्ध की समाप्ति के बाद जीते हुए राजा की सेना का अंग बन जाती थी. युद्ध के समय कोई भी सैनिक किसी असैनिक नागरिक अथवा औरतों / बच्चो पर हाथ नहीं उठा सकता था.

कई शक्तिशाली राजा बिना युद्ध के ही अन्य राजा के राज्य को अपने राज्य में मिला लेते थे. इसके लिए वो अश्वमेघ यग्य करते थे. उनका घोड़ा जिस राज्य में जाता था उसका राजा या तो आधीनता स्वीकार कर लेता था या फिर युद्ध करता था. भारत में यह व्यवस्था सैकड़ों बर्ष तक चलती रही. राजा बदलने से प्रजा के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था.

प्राचीन भारत का राजतंत्र भी एक तरह से आज के लोकतंत्र की ही तरह था. अंतर केवल इतना था कि आज जनता वोट देकर राजा को चुनती है और तब राजा को शस्त्र और शास्त्र के द्वारा अपनी योग्यता साबित करनी पड़ती थी. राज्यों की जनता राजा के बदलने पर उसी तरह अप्रभावित रहती थी जैसे आज चुनाव में दुसरी पार्टी के जीतने पर.

भारत में जनता की मुसीबत की शुरुआत हुई विदेशी और विधर्मी आक्रमणकारी लुटेरों के हमले के बाद. यह विदेशी आक्रमणकारी युद्ध जीतने के लिए आम जनता एवं औरतों / बच्चो को अपना निशाना बनाते थे. इस्लामी हमलावर जब किसी राज्य पर हमला करते थे हारे हुए राज्य की महिलाओ और सम्पत्ति को अपनी जीत का ईनाम समझते थे.   

यह “अमानव” दहशत फैलाने के लिए बच्चो की ह्त्या करते थे, औरतों से बलात्कार करते थे तथा नागरिकों को गुलाम बनाते थे. मंदिरों को तोड़ना, धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचाना, लूटपाट करना इनका मुख्य काम था. इन लोगों के आक्रमण के बाद भारत की व्यवस्था ही बदल गई. सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत, बदहाल हो गया.