Sunday, 13 March 2022
जम्मू & कश्मीर की हिंसा कोई राजनैतिक हिंसा नहीं थी बल्कि "गज्बा ए हिन्द" की शुरआत थी
Wednesday, 2 March 2022
भारतीय युद्ध प्रणाली बनाम इस्लामी युद्ध प्रणाली
प्राचीन भारत में जब कोई राजा अपने राज्य का विस्तार करने की खातिर किसी अन्य राज्य पर आक्रमण करता था तो भी उनकी प्रजा अप्रभावित रहती थी. दोनों राजा अपनी अपनी सेना लेकर किसी निर्जन स्थान पर युद्ध करते थे जिससे प्रजा को कोई परेशानी न हो. युद्ध जीतने वाले राजा को, युद्ध हारने वाले राज्य की प्रजा अपना राजा मान लेती थी.
युद्ध के समय भी युद्ध के नियम होते थे. सूर्यास्त के बाद दोनों तरफ के सैनिक एक दूसरे से मिल सकते थे. युद्ध में हारने वाले राजा की सेना भी युद्ध की समाप्ति के बाद जीते हुए राजा की सेना का अंग बन जाती थी. युद्ध के समय कोई भी सैनिक किसी असैनिक नागरिक अथवा औरतों / बच्चो पर हाथ नहीं उठा सकता था.
कई शक्तिशाली राजा बिना युद्ध के ही अन्य राजा के राज्य को अपने राज्य में मिला लेते थे. इसके लिए वो अश्वमेघ यग्य करते थे. उनका घोड़ा जिस राज्य में जाता था उसका राजा या तो आधीनता स्वीकार कर लेता था या फिर युद्ध करता था. भारत में यह व्यवस्था सैकड़ों बर्ष तक चलती रही. राजा बदलने से प्रजा के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था.
प्राचीन भारत का राजतंत्र भी एक तरह से आज के लोकतंत्र की ही तरह था. अंतर केवल इतना था कि आज जनता वोट देकर राजा को चुनती है और तब राजा को शस्त्र और शास्त्र के द्वारा अपनी योग्यता साबित करनी पड़ती थी. राज्यों की जनता राजा के बदलने पर उसी तरह अप्रभावित रहती थी जैसे आज चुनाव में दुसरी पार्टी के जीतने पर.
भारत में जनता की मुसीबत की शुरुआत हुई विदेशी और विधर्मी आक्रमणकारी लुटेरों के हमले के बाद. यह विदेशी आक्रमणकारी युद्ध जीतने के लिए आम जनता एवं औरतों / बच्चो को अपना निशाना बनाते थे. इस्लामी हमलावर जब किसी राज्य पर हमला करते थे हारे हुए राज्य की महिलाओ और सम्पत्ति को अपनी जीत का ईनाम समझते थे.
यह “अमानव” दहशत फैलाने के लिए बच्चो की ह्त्या करते थे, औरतों से बलात्कार करते थे तथा नागरिकों को गुलाम बनाते थे. मंदिरों को तोड़ना, धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचाना, लूटपाट करना इनका मुख्य काम था. इन लोगों के आक्रमण के बाद भारत की व्यवस्था ही बदल गई. सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत, बदहाल हो गया.