जबकि वास्तविकता यह है कि- इसका निर्माण "सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य" ने कराया था. तब यह चटगांव (चट्टोग्राम) से शुरू होकर काबुल से भी काफी आगे उज़्बेकिस्तान के तरमीज़ में सिल्क रोड में मर्ज होकर समाप्त होती थी.
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के बाद के राजाओं ने इसे और भी विस्तार दिया और यह मार्ग चट्टोग्राम (बांग्लादेश) से रंगून (म्यानमार), बैंकाक (थाईलैंड), अंकोरवाट (कम्बोडिया) होते हुए वियतनाम के "हो ची मीन" तक पहुँच गया था.
लेकिन अगर आप अपने आसपास के 10 लोगों से पूछेंगे तो उनमें से 9 लोग बताएंगे कि ग्रैंड ट्रैंक रोड को "शेरशाह सूरी" ने बनवाया था क्योंकि उन्होंने अपनी इतिहास के किताब में यही पढ़ा हुआ है जबकि यह भ्रामक तथ्य है.
शेरशाह ने कुल चार साल राज किया था और वह भी बहुत छोटे हिस्से पर. इन चार सालों में भी उसने कोई निर्माण नहीं किया बल्कि युद्ध ही लड़ता रहा. शेरशाह सूरी से पहले बाबर, तैमूर, मोहम्मद गौरी इसी मार्ग से भारत में आये थे.
भारत की इस सबसे लंबी एवं प्रसिद्ध सड़क को शेरशाह ने नहीं बल्कि शेरशाह से 1850 साल पहले "चंद्रगुप्त मौर्य" ने बनवाया था. चंद्र गुप्त मौर्य के बाद, अशोक, पुष्यमित्र शुंग, वीर विक्रमादित्य, आदि ने इसमें सुधार किया.
उत्तरा पथ के पूर्वी भाग को बनाने का श्रेय कम्बोडिया के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय को जाता है. सूर्यवर्मन द्वितीय ने ही दुनिया का सबसे विशाल बिष्णु मंदिर "अंकोरवाट" बनवाया था. लेकिन हमारे सेकुलर इतिहासकारों ने शेरशाह के महिमामंडन हेतु उसे GT ROAD का निर्माता घोषित कर दिया .
ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि GT ROAD शेरशाह (1540-1545) से 1850 साल पहले 329 ईसा पूर्व से ही भारत में मौजूद है. चंद्रगुप्त मौर्य के समय इस सड़क को "उत्तरा पथ" के नाम से जाना जाता था.
हो सकता है शेरशाह ने अपने इलाके में पड़ने वाले इस सड़क के कुछ हिस्से की रिपेयर करवाई हो. शेरशाह ने अपने इलाके में इसका नाम बदल कर "सड़क-ए-आजम" कर दिया था लेकिन इतिहासकारों ने इसे "सड़क-ए-शेरशाह" कहना शुरू कर दिया.
इसका वर्तमान नाम "ग्रैंड ट्रैंक रोड" अंग्रेजों का दिया हुआ है. जिस शेरशाह सूरी के बारे में इतिहास की किताब में कसीदे पढ़े गए हैं, वो केवल 4 साल (1540-1545) तक ही सत्ता में रहा था लेकिन इरफान हबीब और रोमिला थापर ने उसे निर्माता बना दिया.
शेरशाह सूरी ने एक छोटे से इलाके पर मात्र चार साल राज करते हुए चटगांव से तरमीज़ तक सड़क वैसे ही बनाई थी जैसे मोहम्मद गौरी और उसके गुलाम कुतबुद्दीन ने अजमेर में अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद बनाई थी या चार साल में कुतुबुद्दीन ने कुतुबुद्दीन ने क़ुतुबमीनार बना दी थी