Friday, 13 August 2021

केलाड़ी रानी चेन्नम्मा

इतिहास में "चेन्नम्मा" नाम की दो रानियों को बहुत ही सम्मान के साथ याद किया जाता है. इनमे से एक हैं "कित्तूर रानी चेन्नम्मा" और दूसरी है "केलाड़ी रानी चेन्नम्मा". "कित्तूर रानी चेन्नम्मा" ने अंग्रेजों से टक्कर ली थी और "केलाड़ी रानी चेन्नम्मा" ने मुघलो को दक्षिण में बढ़ने से रोका था और शिवाजी महाराज के पुत्र "राजाराम" को शरण दी थी.
कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र में "केलाड़ी" नाम का एक स्वतंत्र राज्य था. सन 1664 में "सोमशेखर नायक" केलाड़ी के राजा बने. वे एक कुशल और धार्मिक राजा थे. वे जाति, धन और खानदान के आधार पर इंसानो में भेद करने को अच्छा नहीं मानता था. उन्होने एक स्थानीय व्यापारी सिद्दप्पा शेट्टार की बेटी "चेन्नम्मा" से विवाह किया था.
जब उन्होंने किसी राजकुमारी के बजाय एक गैर राजवंशी लड़की से विवाह करने की घोषणा की तो उनके गुरु और मंत्रियों ने यह कहकर बिरोध किया कि - एक साधारण व्यापारी की पुत्री कैसे साम्राज्ञी बन सकती है. लेकिन वे नहीं माने और उन्होंने चेन्नम्मा को केलाड़ी की रानी बनाया. उनका विवाह बड़ी धूमधाम और शाही वैभव के साथ संपन्न हुई.
रानी चेन्नम्मा भी राजघराने की गरिमा का सम्मान करते हुए एक कुशल रानी की तरह राजघराने का कार्य देखने लगी. वह राज्य के विषयों में रूचि लेती और महत्वपूर्ण मामलों पर राजा को बहुमूल्य सलाह भी देती. शीघ्र की राज्य की जनता और राज कर्मचारी रानी चेन्नम्मा को सम्मान देने लगे. परन्तु इसी बीच राजा सोमशेखर एक नर्तकी के चक्कर में पड़ गए.
वह राज-काज उपेक्षा कर नर्तकी के साथ समय बिताने लगे जिसके कारण राज्य की स्थिति ख़राब होने लगी. ऐसे में बीजापुर का सुल्तान कलेड़ी पर आक्रमण कर कब्ज़ा करने की सोंचने लगा. मंत्रियों ने उनको चेताया मगर राजा सोमशेखर ने ध्यान नहीं दिया. मंत्रियों के समझाने पर उस नाजुक समय में चेनम्मा ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली.
इस बीच बीजापुर के सुलतान ने चेन्नम्मा के पति राजा सोमशेखर की हत्या करवा दी और कलेड़ी पर आक्रमण कर दिया. ऐसे में रानी चेन्नम्मा ने शोक को भुलाकर अपनी सेना का नेतृत्व किया और युद्ध में बीजापुर की सेना को पीठ दिखाकर भागने पर मजबूर कर दिया. इस जीत के बाद 1671 में चेन्नम्मा को आधिकारिक तौर पर कलेड़ी की रानी घोषित किया गया.
उस समय चेन्नम्मा निसंतान थी इसलिए राज्य के वारिस के रूप में उसने बसप्पा नायक को गोद ले लिया. रानी चेन्नम्मा ने 25 साल तक राज किया. उनके शासन काल में कलेड़ी में शांति स्थापित हुई और राज्य में खुशहाली बढ़ी. उन्होंने अनेको मंदिरों का जीर्णोद्धार कर, वहां विशेष पूजा की व्यवस्था की तथा मठों को स्थापित करने के लिए भूमि दी.
चेन्नम्मा के प्रभाव को बढ़ते देखकर पडोसी राज्य मैसूर की सेना ने उस पर हमला कर दिया. उन्होंने मैसूर की सेना को दो बार परास्त किया. अंततः मैसूर के राजा को कलेड़ी से संधि करनी पड़ी. उन्होंने अन्य राज्यों के विद्वानों को कलेड़ी में बसने के लिए आमंत्रित किया. चेन्नम्मा बहुत ही धार्मिक विचारों की रानी थी और अपनी सभी विजयों का श्रेय भगवान् को देती थीं.
रानी चेन्नम्मा प्रार्थना और पूजा के बाद सन्यासियों को दान देती थीं. एक बार चार सन्यासी रानी के पास आये. इन चारों का व्यवहार सन्यासियों जैसा नहीं था जिसे रानी ने भांप लिया. रानी के पूछने पर इन चारों के सरदार ने बताया की वह छत्रपति शिवाजी का पुत्र राजाराम है. शिवाजी के पुत्र को इस हालत में देखकर रानी दंग रह गयी और दुःख हुआ.
उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि- हिन्दुओं की रक्षा करने वाले शिवाजी महाराज के पुत्र आज उनके राज्य में शरण चाहते हैं. राजाराम से औरंगजेब के अत्याचारों और उनके भाई संभाजी की हत्या के बारे में जानकार उनको बहुत दुःख हुआ. उन्होंने राजाराम और उसके साथियों को शरण दी और कर्मचारियों को निर्देश दिया कि- उनका विशेष अतिथियो की तरह ध्यान रखा जाए.
जब औरंगजेब को पता चला कि- केलाड़ी की रानी चेन्नम्मा ने शिवाजी महाराज के पुत्र को अपने राज्य में शरण दी हुई है तो उसने रानी चेन्नम्मा को सन्देश भेजा कि- शिवाजी के पुत्र को उनके हवाले कर दे वरना केलाड़ी पर आक्रमण कर उस नष्ट कर दिया जाएगा. रानी चेनम्मा ने सन्देश दिया कि - राजाराम की रक्षा की जायेगी उसे जो करना है कर ले.
तब औरंगजेब की सेना ने केलाड़ी पर आक्रमण कर दिया मगर रानी चेन्नम्मा के नेतृत्व में केलाड़ी की बहादुर सेना ने औरंगजेब की सेना का डट कर मुकाबला किया. केलाड़ी की भौगोलिक स्थिति से अनभिज्ञ मुग़ल सेना को कुदरती भूल भुलैया में उलझाकर उसका संहार करना शुरू कर दिया. तब अपने सैनिको की जान बचाने के लिए औरंगजेब रानी चेनम्मा से संधी करने को मजबूर हुआ.
ऐसी वीरांगना, धर्मपरायण और शरणागत वत्सल, केलाड़ी की रानी चेन्नम्मा को मेरा बार बार प्रणाम.





Prasoon Verma, Rajkumari Nair and 54 others
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