पाकिस्तान ने अपनी अधार्मिक कट्टरता के चलते पाकिस्तान में मौजूद हिंदुओं के अनेकों मंदिरों को नष्ट कर दिया था. अभी जो मंदिर बचे हुए भी है, वो भी बहुत ही जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं. अगर पाकिस्तान चाहे तो उन मंदिरों का पुनरुद्धार करके धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे सकता है.
ऐसा होने से हिंदू भी अपने प्राचीन मंदिरों के दर्शन कर सकेंगे और पाकिस्तानियों की आमदनी भी बढ़ेगी. यदि ऐसा होता है तो धार्मिक पर्यटन बढ़ने से दोनो देशों के बीच दुश्मनी की भावना में भी कुछ कमी अवश्य आयेगी. पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तान की जनता को इस विषय में विचार करना चाहिए.
हिंगलाज माता का मंदिर************************
बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के किनारे बना ये मंदिर, माता सती के 51 प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. एक समय जब इस मंदिर में दर्शन करने दुनियाभर से हिंदू पहुंचते थे. लेकिन अब ये मंदिर वीरान पड़ा रहता है.
कटासराज शिव मंदिर
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भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर महाभारत काल का बताया जाता है. कटासराज मंदिर पाकिस्तान के चकवाल जिले से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित है. इस परिसर में सात या इससे भी ज्यादा मंदिर हैं, जिसे सतग्रह के रूप में भी जाना जाता है.
कहते हैं कि भगवान शिव अपनी पत्नी सती के साथ यहां रहते थे. उनकी मृत्यु के बाद, दुख से त्रस्त शिव अपने आंसू नहीं रोक सके. वे इतना रोए थे, कि उनके आसूंओं से दो तालाब निर्मित हो गए. एक कटारसराज में है, तो दूसरा राजस्थान के पुष्कर में.
मंदिर में स्थित इस कुंड को कटाक्ष कुंड भी कहते हैं. तालाब और मंदिर का नाम भी एक ऐसे शब्द से लिया गया है जो उनके दुख को व्यक्त करता है। कटास का अर्थ आंखाें में आंसू से होता है. पांडवों ने अपना वनवास का काफी समय यहाँ बिताया था.
लेकिन 11वीं सदी में महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद मंदिर का वैभव नष्ट हो गया.बताया जाता है कि 11वीं सदी में महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद मंदिर का वैभव नष्ट हो गया. प्राण और आजीविका बचाने के लिए कलाकारों का पलायन हुआ.
बहुतों को गुलाम बनाकर अरब में बेच दिया गया जहां से ये यूरोप पहुंचे. कई शोध बताते हैं कि यूरोप की जिप्सी या रोमां जाति के लोग उन्हीं कलाकारों के वंशज हैं जिनके संगीत को रोमां संगीत कहा जाता है. सुषमा स्वराज ने कहा था कि रोमां, भारत की संतान है.
कटासराज में एक विश्वविद्यालय भी था जो दर्शनशास्त्र का बड़ा केंद्र था. कहते हैं कि वहां नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक गोरखनाथ और प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भी गए थे. कटासराज के पास की साल्ट रेंज पहाडियों का सेंधा नमक आज भी हिंदुओं के लिए पवित्र है.
सन् 2005 में भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कटासराज की यात्रा की थी. कटासराज, हमारी विरासत का वो हिस्सा है जिसका प्रभाव इस उपमहाद्वीप में ही नहीं, बल्कि रोमां संगीत की वजह से पूरी दुनिया में कायम है.
सैयदपुर का राम कुंड मंदिर
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1893 के रावलपिंडी गजेटियर के आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, हर साल "राम कुंड" नामक स्थान के पास एक तालाब पर एक मेला आयोजित किया जाता था. यह याद करने के लिए कि राम और उनके परिवार ने एक बार इसमें पानी पीया था.
1947 में भारत के विभाजन के बाद मंदिर को बंद कर दिया और मूर्तियां हटा दी गई. 1960 में मंदिर की इमारत का उपयोग लड़कियों के स्कूल के रूप में किया जाने लगा. 2006 में इसे राजधानी विकास प्राधिकरण द्वारा एक पर्यटक आकर्षण में बदल दिया गया है
कराची का पंचमुखी हनुमान मंदिर
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माना जाता है कि जिस जगह पर यह मंदिर है, वहां से 11 मुट्ठी मिट्टी हटाने पर यह पंचमुखी हनुमान मूर्ति प्रकट हुई थी. इस मंदिर का और अंक 11 का गहरा संबंध है.
इस मंदिर में भगवान हनुमान की 11 परिक्रमा लगाने पर भक्तों की सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं और उनकी सारी इच्छाएं पूरी होती है. ये मंदिर भी अपनी भव्यता खो चुका है.
पेशावर का गोरखनाथ मंदिर
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अफगान हमलावरों के मार्ग में पड़ने के कारण इस मंदिर का कई बार विध्वंश हुआ. लेकिन समय समय पर अनेकों राजाओं ने इसका जीर्णोद्धार कराया. 1756 में अब्दाली ने उसका विध्वंस किया लेकिन बहुत जल्द 1758 में वहां अधिकार करने के बाद मराठों ने इसका पनरूद्धार करना शुरू किया.
लेकिन अब्दाली ने फिर 1760 में वहां कब्ज़ा कर लिया और इसे तोड़ दिया. उसके बाद 1851 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया. साल 1947 में बंटवारे के बाद इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे. 2011 में इसे फिर से खोला गया. अब यह मंदिर भी किसी खंडहर की ही तरह दिखता है.
श्री वरुण देव मंदिर
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एक किंवदंती के अनुसार,16वीं शताब्दी में भोजमल नेन्शी भाटिया नाम के एक धनी नाविक ने कलात के खान से मनोरा द्वीप खरीदा था, जिसके पास उस समय समुद्र तट की अधिकांश भूमि थी और फिर उसके परिवार ने उस पर एक मंदिर बनवाया था.
मंदिर के निर्माण का सही वर्ष ज्ञात नहीं है लेकिन माना जाता है कि वर्तमान संरचना का नवीनीकरण 1917-18 के आसपास किया गया था. सामने के गेट पर सिंधी भाषा में शिलालेख कहता हैकि भारिया के सेठ हरचंद मल दयाल दास की पवित्र स्मृति में बेटों की ओर से समर्पण
मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था लेकिन अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित परियोजना के तहत सिंध एक्सप्लोरेशन एंड एडवेंचर सोसाइटी (एसईएएस) द्वारा संरचना की सुरक्षा और संरक्षण के प्रयास किए गए, जो 2018 में मंदिर को सफलतापूर्वक बहाल करने में कामयाब रहे.