Monday, 17 August 2020

संघ कार्यालय पर तिरंगा फहराने से रोकने का सच

अंधबिरोधियों द्वारा अपने कुकर्मो को छुपाने के लिए संघ को बदनाम करने के लिए झूठे किस्से गढ़ने की एक पुरानी परम्परा रही है. आज देश की जनता जिन पार्टियों की सच्चाई को जानकार ठुकरा चुकी है वो अपने ऊपर लगे सच्चे आरोपों की सफाई तो दे नहीं पाते हैं इसलिए बचने के लिए संघ पर ही झूठे आरोप मढ़ने की कोशिश करते हैं.
इस बार यह लोग सन 2001 के एक केस का हवाला देकर यह साबित करना चाहते हैं कि- संघ ने तिरंगा फहराने पर कांग्रेसियों पर केस किया था. उनका कहना है कि- 3 जुलाई 2001 को, तीन कांग्रेसी युवक नागपुर में संघ हेडक्वार्टर पहुंचे. उनके पास भारत का राष्ट्रीय ध्वज था. वे उस बिल्डिंग पर राष्ट्रीय झंडा फहराना चाहते थे.
वहां मौजूद संघ के बड़े नेताओं ने उनको ऐसा नहीं करने दिया, उनसे झंडा छीन लिया और उनको पकड़कर उन पर पुलिस केस कर दिया. आइये अब इस मामले की सच्चाई जानते है. पहली बात तो यह कि - इस मामले में आरएसएस न तो वादी था और न प्रतिवादी, बल्कियह मामला "राज्य सरकार' बनाम "विजय और अन्य" था.
सन 2001 में महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी और विलास राव देशमुख महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. जैसा कि- हम सभी जानते हैं कि अनेकों महत्वपूर्ण इमारतो की तरह नागपुर के संघ कार्यालय को भी सरकारी सुरक्षा मिली हुई है. केवल अधिकृत व्यक्ति ही वहां जा सकता है. किसी भी अनधिकृत व्यक्ति को रोकना पुलिस
का काम होता है.
3 जुलाई 2001 को तीन युवक जो अपने आपको कांग्रेसी बताते थे ( कोर्ट में कांग्रेस ने उनको अपना कार्यकर्ता मानने से इंकार कर दिया था ), बिना अनुमति के उस क्षेत्र में नारे लगाते हुए घुसने लगे. जब उनको पुलिस वालों ने रोका तो वे पुलिस से उलझ पड़े. कहने लगे कि- हम कांग्रेसी हैं और राज्य में सरकार भी हमारी है.
पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर सुरक्षित क्षेत्र में अनाधिकृत प्रवेश करने और पुलिस कर्मियों से अभद्रता करने का केस दर्ज कर लिया. पुलिस ने उनसे झंडा जब्त कर लिया और उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. उनको उकसाने वाले कांग्रेसी नेता भी फिर कहीं दिखाई नहीं दिए और बाद में उनको खुद ही अपना केस लड़ना पड़ा.
यदि हम में से कोई आज भी संघ कार्यालय तो क्या - सोनिया गांधी के घर, केजरीवाल के घर, कांग्रेस मुख्यालय, अथवा किसी भी VIP के घर (जहाँ सरकार द्वारा सुरक्षा दी जाती हो) बिना अनुमति जबरन घुसना चाहे तो पुलिस रोकेगी ही और न मानने पर उसके खिलाफ FIR भी दर्ज करेगी. चाहे आप किसी भी उद्देश्य से ऐसा कर रहे हो.
अब दूसरी बात, झंडा संहिता के अनुसार, 26 जनवरी 2002 तक किसी भी गैर सरकारी इमारत पर तिरंगा फहराना गैर कानूनी होता था. जिन सरकारी इमारतों पर तिरंगा झंडा फहराया भी जाता था , वहां भी झंडा फहराने और उतारने के लिए स्पष्ट निर्देश निर्धारित थे. केवल 15 अगस्त / 26 जनवरी को ही आम लोग झंडा फहरा सकते थे.
झंडे को फहराने और उतारने के लिए नियम कांग्रेस सरकार द्वारा ही बनाय गए थे. कांग्रेस के ही एक नेता "नवीन जिंदल' द्वारा यह मुद्दा उठाने के बाद, "अटल बिहारी बाजपेई" की सरकार ने "नेहरू काल' से चली आ रही झंडा संहिता में परिवर्तन किया था. उसके बाद 26 जनवरी 2002 के बाद ही गैर सरकारी इमारतों पर तिरंगा फहराने की अनुमति मिली थी.
लेकिन इसके लिए भी झंडा फहराने और उतारने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं जिनका कड़ाई से पालन करना होता है. जबकि वे तथाकथित कांग्रेसी युवक झंडा लेकर केवल उपद्रव करने के उद्देश्य से ही ऐसा कर रहे थे. उन युवको को इसीलिए जेल जाना पड़ा. यह मामला आरएसएस का नहीं था बल्कि "राज्य सरकार' बनाम "विजय और अन्य" था
अभी कुछ साल पहले इंदौर में भी कुछ कांग्रेसियों ने ऐसा करने का प्रयास किया था. वे लोग भीड़ इकट्ठी कर नारेबाजी करते हुए संघ कार्यालय की ओर चल पड़े. उनको पता था उनको रोका जाएगा और उन्हें हंगामा करने का मौका मिलेगा. परन्तु संघ के स्वयंसेवकों को इसकी खबर पहले ही लग गई और उन्होंने कार्यालय स्वागत की तैयारी कर ली.
उन्होंने कार्यालय में तिलक लगाने और चाय नाश्ता कराने इंतजाम कर लिया. सुरक्षा में लगे पुलिस वालों को भी निर्देश दे दिया कि- भीड़ में से कुछ प्रतिनिधियों को कार्यालय में भेज दिया जाए. जब वे लोग कार्यालय में आये तो भगवा तिलक लगा कर कांग्रेसियों का स्वागत किया. कांग्रेसियों को खुद छत पर साथ लेकर झंडा फहराने गए.
उन कांग्रेसियो को चाय नाश्ता कराया और उनसे यह भी आग्रह किया कि - सूर्यास्त से पहले झंडा उतारना होता है इसलिए आप शाम को समय से आ जाएँ. अब शाम को उन्होंने क्या आना था ? वो तो केवल विवाद पैदा करने के उद्देश्य से गए थे और यह काम वो कर नहीं पाए . भगवा को बदनाम करने गए कांग्रेसी अपना माथा भगवा कराकर वापस आये थे.
नागपुर वाली उस घटना को लेकर आजकल कांग्रेसी उस शर्मिंदगी से बचने के लिए अपनी पोस्ट में 3 जुलाई 2001 के बजाय 26 जनवरी 2001 लिखते है. अपनी फेसबुक पोस्ट पर चाहें यह कुछ भी लिख लें लेकिन इसकी ऑफिसियल FIR 3 जुलाई 2001की ही दर्ज है. जो महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार के दौर में ही दर्ज की गई थी.