Saturday, 7 October 2017

खजुराहो

खजुराहो भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है जो अपने प्राचीन एवं कलात्मक भवनों के लिये विश्वविख्यात है. खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है. यह शहर चन्देल साम्राज्‍य की प्रथम राजधानी था. खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच चन्देल राजाओं द्वारा किया गया था.

खजुराहो में यूं तो अनेकों ऐसे प्राचीन भवन और मंदिर हैं जिनको वास्तुकला का असाधारण नमूना कहा जा सकता है, लेकिन खजुराहों की प्रसिद्धि की मुख्य बजह वह भवन हैं जिनमे संभोग की विभिन्न मुद्राओं को कलात्मक रूप से उभारा गया है. दुनिया भर के पर्यटक, "प्रेम" के इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए, निरंतर आते रहते है.

भारत और भारतीय संस्क्रति के दुश्मन, इन भवनों और उनमे बनाई गई मूर्तियों को लेकर, अक्सर भारतीय संस्क्रति का अपमान भी करते रहते हैं जबकि सारा विश्व इन्हें दुनिया को भारत की अनमोल देन मानता है. खजुराहो के भवनों में जो दिखाया गया है वह भी जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसको आमतौर पर खुले आम प्रदर्शन नहीं होता है.

तब इन भवनों को बनाने का आखिर क्या उद्देश्य रहा होगा ? हमें गर्व है कि भारत में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को जान्ने और समझने की निरंतर प्रिक्रिया चलती रहती आई है. हमारी संस्क्रति में "काम" को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इसको सबसे बड़े "पुरुषार्थ" में भी गिना जाता है और इसे जीवन की सबसे बड़ी "बुराई" भी माना जाता है.

हमारे पूर्वजों ने जीवन के प्रत्येक अंग का गहन अध्यन किया है. जीवन का विस्त्रत अध्यन करने के बाद उन मनीषियों ने प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ ( धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष ) बताये हैं. "काम" के महत्त्व को समझते हुए इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण पुरुषार्थ कहा गया है. क्योंकि काम के द्वारा ही स्रष्टि, आगे से आगे चलती है.

इसी प्रकार जिन चार बुराइयों ( काम, क्रोध, लोभ और मोह) को सबसे ज्यादा विनाशकारी बताया गया है उन चार महा बुराइयों मे भी "काम" को रखा गया है. अर्थात "काम" जब तक सृजन के लिए है तब तो वह एक पुरुषार्थ है और अगर यही "काम" अनियंत्रित होकर कामंधता में बदल जाए तो महाविनाशकारी भी हो जाता है.

खजुराहो के भवनों में इसी "कामकला" को सिखाया गया है. सभी बड़े भवनों को आमतौर पर मदिर भले ही कह दिया जाता हो लेकिन यह भवन वास्तव में कोई उपासना स्थल नहीं है और न ही यहाँ कोई पूजा पाठ करने जाता है. यह एक तरह से प्राचीन काल के "हनीमून प्वाइंट" जहां लोग "क्वालिटी टाइम" बिताने और कुछ सीखने आते थे.

इन भवनों के साथ मंदिर शब्द जोड़कर, वो असभ्य और बर्बर जातियां, भारतीय संस्क्रति का सबसे ज्यादा मजाक उडाती हैं जिनके यहाँ कामान्धता धर्म का हिस्सा है. जिनके यहाँ औरत को इंसान तक नहीं समझा जाता है. लड़ाई में शत्रु को हराने के बाद शत्रु के परिवार की स्त्रियों को सताना, जहां जीत की निशानी समझा जाता है.

खजुराहो के यह भवन दुनिया भर के लोगों को "कामज्ञान" देने और "छुट्टी मनाने" के लिए जाने के स्थल हैं न की कोई उपासना स्थल. यह मनोरंजन के स्थल है तीर्थस्थल नहीं है. इनका अपना बहुत बड़ा महत्त्व है. पति पत्नी को एक साथ एक बार यहाँ अवश्य जाना चाहिए और मनोरजन के साथ प्राचीन "काम ज्ञान" को समझना चाहिए.

इसका महत्त्व वो लोग नहीं समझ सकते जिनके यहाँ लोग सत्ता के लिए अपनी 9 साल की बेटी को 54 साल आदमी को सौंप देते हैं, इस बर्बर समुदाय के लोग भले ही खजुराहो के भवनों को लेकर भारतीय संस्क्रति का मजाक उड़ाते हो लेकिन यह हकीकत है कि - इंटरनेट पर अश्लील चित्र और फिल्मे देखने में भी यही लोग सबसे आगे हैं.